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Saturday, 22 June 2013

स्वामी जी के प्रवचन बड़े ही तर्कसंगत व प्रेरणादायी होते

अध्ययन समाप्त करने के बाद स्वामी चिन्मयानंद जी के मन मे लोक सेवा करने का विचार प्रबल होने लगा। तपोवन जी से स्वीकृति पाकर वे दक्षिण भारत की ओर चले और पूना पहुंचे। वहां उन्होंने अपना प्रथम ज्ञान यज्ञ किया। यह एक प्रकार का नया प्रयोग था।

प्रारम्भ में श्रोताओं की संख्या चार या छह ही था। वह धीरे धीरे बढ़ने लगी। लगभग एक महीने के ज्ञान यज्ञ के बाद वे मद्रास चले गये और वहां दूसरा ज्ञान यज्ञ प्रारम्भ किया। इन यज्ञों में स्वामी चिन्मयानंद जी स्वयं प्रचार करते थे और स्वयं यज्ञ करते थे। कुछ समय बाद ही उनके सहायक तैयार हुए और फिर उसने एक संस्था का रुप ले लिया। धीरे - धीरे उनके प्रवचनों की मांग बढ़ने लगी। स्वामी जी के प्रवचन बड़े ही तर्कसंगत व प्रेरणादायी होते थे।

स्वामी जी ने भी ज्ञान - यज्ञ का समय एक महीने से घटाकर पंद्रह दिन या फिर और फिर दस दिन या सात दिन कर दिया।

पहले ये ज्ञान-यज्ञ भारत के बड़े शहरों में हुए, फिर छोटे शहरों में। कुछ समय बाद स्वामी जी विदेश भी जाने लगे। अब इन यज्ञों की इतनी अधिक मांग हुई कि उसे एक व्यक्ति द्वारा पूरा करना असम्भव हो गया। इसलिए स्वामी जी ने बंबई सान्दीपनी की स्थापना की और ब्रह्मचारियों को प्रशिक्षित करना प्रारम्भ किया। दो तीन वर्ष पढ़ने के बाद ब्रह्मचारी छोटे यज्ञ करने लगे, स्वाध्याय मंडल चलाने लगे और अनेक प्रकार के सेवा कार्य करने लगे।

इस समय देश में 175 केन्द्र और विदेशों में लगभग 40 केन्द्र कार्य कर रहे है। इन केन्द्रों पर लगभग 150 स्वामी एवं ब्रह्मचारी कार्य में लगे है। यह संख्या हर वर्ष बढ़ रही है

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