लिखिए अपनी भाषा में

Monday, 30 December 2013

"जो" तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा।"

एक औरत अपने परिवार के सदस्यों के लिए रोजाना भोजन
पकाती थी और एक रोटी वह वहां से ...गुजरने वाले
किसी भी भूखे के लिए पकाती थी ,
वह उस रोटी को खिड़की के सहारे रख दिया करती थी जिसे
कोई भी ले सकता था .
एक कुबड़ा व्यक्ति रोज उस रोटी को ले जाता और वजाय
धन्यवाद देने के अपने रस्ते पर चलता हुआ वह कुछ इस तरह
बडबडाता "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और
जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा "
दिन गुजर...ते गए और ये
सिलसिला चलता रहा ,वो कुबड़ा रोज रोटी लेके
जाता रहा और इन्ही शब्दों को बडबडाता
"जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम
अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा "
वह औरत उसकी इस हरकत से तंग आ गयी और मन ही मन
खुद से कहने लगी कि "कितना अजीब व्यक्ति है ,एक शब्द
धन्यवाद का तो देता नहीं है और न जाने
क्या क्या बडबडाता रहता है ,
मतलब क्या है इसका ".
एक दिन क्रोधित होकर उसने एक निर्णय लिया और
बोली "मैं इस कुबड़े से निजात पाकर रहूंगी ".
और उसने क्या किया कि उसने उस रोटी में जहर
मिला दीया जो वो रोज उसके लिए बनाती थी और जैसे
ही उसने रोटी को को खिड़की पर रखने कि कोशिश
कि अचानक उसके हाथ कांपने लगे और रुक गये और वह
बोली "
हे भगवन मैं ये क्या करने जा रही थी ?" और उसने तुरंत उस
रोटी को चूल्हे कि आँच में जला दीया .एक
ताज़ा रोटी बनायीं और खिड़की के सहारे रख दी ,
हर रोज कि तरह वह कुबड़ा आया और रोटी लेके "जो तुम
बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे
वह तुम तक लौट के आएगा " बडबडाता हुआ चला गया इस
बात से बिलकुल बेखबर कि उस महिला के दिमाग में क्या चल
रहा है .
हर रोज जब वह महिला खिड़की पर रोटी रखती थी तो वह
भगवान से अपने पुत्र कि सलामती और अच्छी सेहत और घर
वापसी के लिए प्रार्थना करती थी जो कि अपने सुन्दर
भविष्य के निर्माण के लिए कहीं बाहर गया हुआ
था .महीनों से उसकी कोई खबर नहीं थी.
शाम को उसके दरवाजे पर एक दस्तक होती है ,वह
दरवाजा खोलती है और भोंचक्की रह जाती है ,
अपने बेटे को अपने सामने खड़ा देखती है.वह पतला और
दुबला हो गया था. उसके कपडे फटे हुए थे और वह
भूखा भी था ,भूख से वह कमजोर हो गया था. जैसे ही उसने
अपनी माँ को देखा,
उसने कहा, "माँ, यह एक चमत्कार है कि मैं यहाँ हूँ. जब मैं
एक मील दूर है, मैं इतना भूखा था कि मैं गिर. मैं मर
गया होता,
लेकिन तभी एक कुबड़ा वहां से गुज़र रहा था ,उसकी नज़र
मुझ पर पड़ी और उसने मुझे अपनी गोद में उठा लीया,भूख के
मरे मेरे प्राण निकल रहे थे
मैंने उससे खाने को कुछ माँगा ,उसने नि:संकोच
अपनी रोटी मुझे यह कह कर दे दी कि "मैं हर रोज
यही खाता हूँ लेकिन आज मुझसे ज्यादा जरुरत इसकी तुम्हें है
सो ये लो और अपनी भूख को तृप्त करो " .
जैसे ही माँ ने उसकी बात सुनी माँ का चेहरा पिला पड़
गया और अपने आप को सँभालने के लिए उसने दरवाजे
का सहारा लीया ,
उसके मस्तिष्क में वह बात घुमने लगी कि कैसे उसने सुबह
रोटी में जहर मिलाया था
.अगर उसने वह रोटी आग में जला के नष्ट
नहीं की होती तो उसका बेटा उस रोटी को खा लेता और
अंजाम होता उसकी मौत
और इसके बाद उसे उन शब्दों का मतलब बिलकुल स्पष्ट
हो चूका था
"जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम
अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा।
" निष्कर्ष "
~हमेशा अच्छा करो और अच्छा करने से अपने आप
को कभी मत रोको फिर चाहे उसके लिए उस समय
आपकी सराहना या प्रशंसा हो या न हो .
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Saturday, 14 December 2013

तेनाली एक योद्धा


एक बार एक प्रसिद्ध योद्धा उत्तर भारत से विजयनगर आया। उसने कई युद्ध तथा पुरस्कार जीत रखे थे। इसके अतिरिक्त वह आज तक अपनी पूरी जिंदगी में मल्ल युद्ध में पराजित नहीं हुआ था।

उसने युद्ध के लिए विजयनगर के योद्धाओं को ललकारा। उसके लंबे, गठीले व शक्तिशाली शरीर के सामने विजयनगर का कोई भी योद्धा टिक न सका। अब विजयनगर की प्रतिष्ठा दांव पर लग चुकी थी। इस बात से नगर के सभी योद्धा चिंतित थे। बाहर से आया हुआ एक व्यक्ति पूरे विजयनगर को ललकार रहा था और वे सब कुछ भी नहीं कर पा रहे थे अतः सभी योद्धा इस समस्या के हल के लिए तेनालीराम के पास गए।


उनकी बात बड़े ध्यान से सुनने के बाद तेनालीराम बोला- 'सचमुच, यह एक बड़ी समस्या है, परंतु उस योद्धा को तो कोई योद्धा ही हरा सकता है। मैं कोई योद्धा तो हूं नहीं, बस एक विदूषक हूं। इसमें मैं क्या कर सकता हूं?'

तेनालीराम की यह बात सुन सभी योद्धा निराश हो गए, क्योंकि उनकी एकमात्र आशा तेनालीराम ही था। जब वे निराश मन से जाने लगे तो तेनालीराम ने उन्हें रोककर कहा- 'मैं उत्तर भारत के उस वीर योद्धा से युद्ध करूंगा और उसे हराऊंगा, परंतु तुम्हें वचन देना कि जैसा मैं कहुंगा, तुम सब वैसा ही करोगे।' उन लोगों ने तुरंत वचन दे दिया।

वचन लेने के बाद तेनालीराम बोला- 'शक्ति परीक्षण के दिन तुम सभी पदक पहना देना और उस योद्धा से मेरा परिचय अपने गुरु के रूप में कराना और मुझे अपने कंधे पर बैठाकर ले जाना।'









विजयनगर के योद्धाओं ने तेनालीराम को ऐसा ही करने आश्वासन दिया। निश्चित दिन के लिए तेनालीराम ने योद्धाओं को एक नारा भी याद करने को कहा, जो कि इस प्रकार था, 'ममूक महाराज की जय', 'मीस ममूक महाराज की जय।' 

तेनालीराम ने कहा- 'जब तुम मुझे कंधों पर बैठाकर युद्धभूमि में जाओगे, तब सभी इस नारे को जोर-जोर से बोलना।'

अगले दिन युद्धभूमि में जोर-जोर से नारा लगाते हुए योद्धाओं की ऊंची आवाज सुनकर उत्तर भारत के योद्धा ने सोचा कि अवश्य ही कोई महान योद्धा आ रहा है। 

नारा कन्नड़ भाषा का साधारण श्लोक था जिसमें 'ममूक' का अर्थ था- 'धूल चटाना' जबकि 'मीस' का अर्थ भी लगभग यही था। उत्तर भारत के योद्धा को कन्नड़ भाषा समझ में नहीं आ रही थी अतः उसने सोचा कि कोई महान योद्धा आ रहा है।

तेनालीराम उत्तर भारत के योद्धा के पास आया और बोला- 'इससे पहले कि मैं तुम्हारे साथ युद्ध करूं, तुम्हें मेरे हाव-भावों का अर्थ बताना होगा। दरअसल प्रत्येक महान योद्धा को इन हाव-भावों का अर्थ ज्ञात होना चाहिए। अगर तुम मेरे हाव-भावों का अर्थ बता दोगे, तभी मैं तुम्हारे साथ युद्ध करूंगा। यदि तुम अर्थ नहीं बता सके तो तुम्हें अपनी पराजय स्वीकार करनी पडेगी।'

इतने बड़े-बड़े योद्धाओं को देख, जो कि तेनालीराम को कंधों पर उठाकर लाए थे और उसे अपना गुरु बता रहे थे व जोर-जोर से नारा भी लगा रहे थे, वह योद्धा सोचने लगा कि अवश्य ही तेनालीराम कोई बहुत ही महान योद्धा है अतः उसने तेनाली की बात स्वीकार कर ली।

इसके बाद तेनालीराम ने संकेत देने आरंभ किए। तेनालीराम ने सर्वप्रथम अपना दायां पैर आगे करके योद्धा की छाती को अपने दाएं हाथ से छुआ। फिर अपने बाएं हाथ से उसने स्वयं को छुआ, तत्पश्चात उसने अपने दाएं हाथ को बाएं हाथ पर रखकर जोर से दबा दिया। इसके बाद उसने अपनी तर्जनी से दक्षिण दिशा की ओर संकेत किया।

फिर उसने अपने दोनों हाथों की तर्जनी उंगलियों से एक गांठ बनाई, तत्पश्चात एक मुट्ठी मिट्टी उठाकर अपने मुंह में डालने का अभिनय किया।

इसके पश्चात उसने उत्तर भारत के योद्धा से इन हाव-भावों को पहचानने के लिए कहा, परंतु वह योद्धा कुछ समझ नहीं पाया इसलिए उसने अपनी पराजय स्वीकार कर ली। वह विजयनगर से चला गया और जाते-जाते अपने सभी पदक व पुरस्कार तेनालीराम को दे गया।

विजयनगर के राजा व प्रजा परिस्थिति के बदलते ही अचंभित-से हो गए। सभी योद्धा बिना युद्ध किए ही जीतने से प्रसन्न थे। राजा ने तेनालीराम को बुलाकर पूछा- 'तेनाली, उन हाव-भावों से तुमने क्या चमत्कार किया?'

तेनालीराम बोला- 'महाराज, इसमें कोई चमत्कार नहीं था। यह मेरी योद्धा को मूर्ख बनाने की योजना थी। मेरे हाव-भावों के अनुसार वह योद्धा उसी प्रकार शक्तिशाली था जिस प्रकार किसी का दायां हाथ शक्तिशाली होता है और मैं उसके सामने बाएं हाथ की तरह निर्बल था। 

यदि दाएं हाथ के समान शक्तिशाली योद्धा बाएं हाथ के समान निर्बल योद्धा को युद्ध के लिए ललकारेगा तो निर्बल योद्धा तो बादाम की तरह कुचल दिया जाएगा, सो यदि मैं युद्ध हारता तो दक्षिण दिशा में बैठी मेरी पत्नी को अपमानरूपी धूल खानी पडती। मेरे हाव-भावों का केवल यही अर्थ था जिसे वह समझ नहीं पाया।'

तेनाली का यह जवाब सुनकर राजा व सभी एकत्रित लोग ठहाका लगाकर हंस पड़े



पापा की कार …


एक मेहनती और ईमानदार नौजवान बहुत पैसे
कमाना चाहता था क्योंकि वह गरीब था और
बदहाली में जी रहा था।
उसका सपना था कि वह मेहनत करके खूब पैसे
कमाये और एक दिन अपने पैसे से एक कार खरीदे।
जब भी वह कोई कार देखता तो उसे अपनी कार
खरीदने का मन करता।
कुछ साल बाद उसकी अच्छी नौकरी लग गयी।
उसकी शादी भी हो गयी और कुछ ही वर्षों में वह
एक बेटे का पिता भी बन गया।
सब कुछ ठीक चल रहा था मगर फिर भी उसे एक
दुख सताता था कि उसके पास उसकी अपनी कार
नहीं थी।
धीरे – धीरे उसने पैसे जोड़ कर एक कार खरीद ली।
कार खरीदने का उसका सपना पूरा हो चुका था और
इससे वह बहुत खुश था।
वह कार की बहुत अच्छी तरह देखभाल
करता था और उससे शान से घूमता था।
एक दिन रविवार को वह कार को रगड़ – रगड़ कर
धो रहा था।
यहां तक कि गाड़ी के टायरों को भी चमका रहा था।
उसका 5 वर्षीय बेटा भी उसके साथ था।
बेटा भी पिता के आगे पीछे घूम – घूम कर कार
को साफ होते देख रहा था।
कार धोते धोते अचानक उस आदमी ने
देखा कि उसका बेटा कार के बोनट पर किसी चीज़ से
खुरच – खुरच कर कुछ लिख रहा है।
यह देखते ही उसे बहुत गुस्सा आया।
वह अपने बेटे को पीटने लगा।
उसने उसे इतनी जोर से पीटा कि बेटे के हाथ की एक
उंगली ही टूट गयी।
दरअसल वह आदमी अपनी कार को बहुत
चाहता था और वह बेटे की इस शरारत को बर्दाश्त
नहीं कर सका ।
बाद में जब उसका गुस्सा कुछ कम हुआ तो उसने
सोंचा कि जा कर देखूं कि कार में कितनी खरोंच
लगी है।????
कार के पास जा कर देखने पर उसके होश उड़ गये।
.
उसे खुद पर बहुत गुस्सा आ रहा था।
वह फूट – फूट कर रोने लगा।
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कार पर उसके बेटे ने खुरच कर लिखा था
Papa, I love you.... 

यह कहानी हमें यह सिखाती है कि किसी के बारे में
कोई गलत राय रखने से पहले या गलत फैसला लेने
से पहले हमें ये ज़रूर सोंचना चाहिये कि उस
व्यक्ति ने वह काम किस नियत से किया है

Friday, 13 December 2013

फेसबुक के 6 दिलचस्प फीचर्स जो आप नहीं जानते हैं


1 फेसबुक पर भेजे ईमेल 

आप जिस तरह अपने जीमेल या याहू मेल से किसी को ईमेल करते हैं उसी तरीके 
से आप अपने फेसबुस फ्रेंड को जीमेल से फेसबुक पर ईमेल कर सकते हैं। किसी 
को ईमेल भेजने के लिए ईमेल आईडी की जरूरत होती है। फेसबुक ने सभी यूजर्स 
को ईमेल एड्रेस के रूप में एक पहचान दे रखी है। 

आप किसी भी फेसबुक यूजर्स को उसके यूजर नेम के साथ फेसबुक डॉट कॉल 
(username@facebook.com) लिखकर ईमेल कर सकते हैं। ये ईमेल आपके फेसबुक 
फ्रेंड के मैसेज बॉक्स में आपकी तस्वीर के साथ दिखाई देता है। 

नोट: यूजर नेम कॉमन होने के कारण यूजर नेम के साथ कुछ अंक भी हो सकते 
हैं। फेसबुक फ्रेंड के अबउट सेक्शन जाकर आप फ्रेसबुक ईमेल आईडी देख सकते 
हैं। 
2 इंट्रेस्ट लिस्ट बनाना Create an interest list 

फेसबुक यूजर्स के लिए ये भी विकल्प मौजूद है कि वे अपने दिलचस्पी की 
चीजों की एक लिस्ट बना सकते हैं। 

Create list पर क्लिक करते ही अपने समाने एक विंडो खुल कर आती है। जिसमें 
आपके द्वारा लाइक की गईं चीजें दिखाई देंगी। 

आप लाइक की गईं चीजों जैसे पेज, मूवी, बुक वगैराह को एक नाम देकर ऑगनाइज 
कर सकते हैं। साथ ही ये तय कर सकते हैं कि आपके द्वारा लाइक की गईं 
किन-किन चीजों को कौन-कौन देख सकता है। 

3 फोटो व्यू पुराने अंदाज में 

फेसबुक ने अपनी साइट पर काफी सारे बदलाव कर दिए हैं। कुछ लोगों के ये 
बदलाव अच्छे लगते है तो कुछ लोग इसको न पसंद भी करते हैं। 

लेकिन न पसंद करने पर नहीं उन बदले हुए फीचर का इस्तेमाल करना होता है। 
जैसे फेसबुक पर फोटो को देखना। जैसे ही आप फोटो पर क्लिक करते हैं एक 
ब्लैक बॉक्स के अंदर आपको फोटो दिखाई देती है। 

अगर आप इसको पुराने अंदाज में देखना चाहते हैं तो बस कंप्यूटर के F5 बटन 
को दबाएं। और पुराने अंदाज में फोटो के देखें। 

4 फेसबुक टैगिंग से निजात 

कुछ फेसबुक यूजर्स को इस बात से काफी परेशानी हो जाती है कि उनको 
अनाप-शनाप तस्वीरों में टैग कर दिया जाता है। 
टैग तस्वीर आपके सभी फेसबुक दोस्तों को दिखाई दे रही होती है। 

लेकिन आप ऐसी टैगिंग से बच सकते हैं। इसके लिए आप टैगिंग रिव्यू का 
इस्तेमाल कर सकते हैं। जिसमें अगर कोई व्यक्ति आपको टैग करना चाहता है तो 
पहले उस तस्वीर को देखेंगे फिर उसको टैगिंग की अनुमति देंगे। 

इसके लिए आप फेसबुक के सेटिंग में जाकर बाएं ओर दिए गए ऑप्‍शन टाइमलाइन 
एंड टैगिंग पर ‌क्लिक करके टैगिंग रिव्यू विकल्प को ऑन कर सकते हैं। 

5 फेसबुक ‌डाउनलोडिंग 

सोशल नेटव‌र्किंग साइट फेसबुक पर आप जो भी पोस्ट, फोटो, मैसेज, इंफोमेशन 
शेयर करते हैं, वो हमेशा फेसबुक पर ही रहती है। अगर आप चाहें तो आप ये 
डाटा अपने कंप्यूटर में भी डाउनलोड कर सकते हैं। 

फेसबुक से डाटा डाउनलोड करने के लिए फेसबुक सेटिंग में जाकर, जनरल अकाउंट 
सेटिंग पर क्लिक करें। यहां आपको पासवर्ड बदलने का ऑप्‍शन भी मिलता है और 
नीचे की ओर एक डाउनलोड कॉपी का ऑप्‍शन भी होता है। 

डाउनलोड कॉपी पर क्लिक करके आप फेसबुक का सारा डाटा डाउनलोड कर सकते हैं। 

6 फेसबुक नोटिफिकेशन 

अगर आप स्मार्टफोन में फेसबुक का इस्तेमाल हैं तो कभी-कभी फेसबुक की 
लगातार आने वाली नोटिफिकेशन परेशान भी कर देती हैं। 

आप फेसबुक नोटिफिकेशन को बंद भी कर सकते हैं। इसके लिए आपके स्मार्टफोन 
के प्राइवेसी सेटिंग में जाकर, नो‌टिफिकेशन ऑप्‍शन पर क्लिक करें। यहां 
मोबाइल पुश को देखें और टिक को हटा दें। 

Tuesday, 10 December 2013

आपस में फुट जगत की लुट

बेलो की नासमझी
बहुत समय की बात है, जंगल में चार बेल रहते थे | उनका आपस में बहुत प्रेम था | वे आपस में घूमते, साथ खाते पीते और कभी भी झगड़ा नहीं करते थे | उसी जंगल में शेर भी रहता था | बेलो को देखकर वह उन्हें खाने के लिए नए नए उपाय करता, ताकि वह उन्हें खा सके | पर उन चारो को एक साथ देख कर निराश हो जाता था |
और एक दिन उसने चारो बेलो को लड़ाने का उपाय सोच लिया | वह उन चारो बेलो के पास जाकर इधर-उधर घुमने लगा | बेल उसे अपने इतने पास घूमता देखकर डर गए | घबराहट के कारण वे एक दुसरे से अलग हो गए | बस शेर को तो इसी मोके की तलाश में था | वह बारी-बारी से एक-एक बेल के पास गया और उनके कान में कुछ कहा – "कुछ नहीं" और फिर वहा से चला गया और दूर कही पेड़ के पीछे छिप गया | अब क्या था चारो बेल यह जानने को उसुक्त थे की शेर ने उनके कान में क्या कहा |
चारो बेलो ने एक दुसरे को एक ही उतर दिया – कुछ नहीं कहा | अब सभी बेलो के दिमाग में एक ही बात चल रही थी की कही यह उससे मिल न गया हो और हमसे शेर की बात छिपा रहा हो | इसी बात को लेकर चारो बेलो में लड़ाई हो गई और अलग – अलग हो गए | और सबने अपनी दोस्ती भी तोड़ दी और अलग-अलग जंगल में घुमने लगे |
अपनी तरकीब को सफल देख कर शेर बहुत खुश हो गया | इस प्रकार उसने चारो को बारी-बारी में मारकर खा लिया|
सीख: आपस में फुट जगत की लुट 

*"This is called Self Appraisal"

एक छोटा बच्चा एक बड़ी दुकान पर लगे टेलीफोन बूथ पर जाता हैं और मालिक से छुट्टे पैसे लेकर एक नंबर डायल करता हैं|

दुकान का मालिक उस लड़के को ध्यान से देखते हुए उसकी बातचीत पर ध्यान देता हैं

लड़का- मैडम क्या आप मुझे अपने बगीचे की साफ़ सफाई का काम देंगी?

औरत- (दूसरी तरफ से) नहीं, मैंने एक दुसरे लड़के को अपने बगीचे
का काम देखने के लिए रख लिया हैं|

लड़का- मैडम मैं आपके बगीचे का काम उस लड़के से आधे वेतन में करने
को तैयार हूँ!

औरत- मगर जो लड़का मेरे बगीचे का काम कर रहा हैं उससे मैं पूरी तरह संतुष्ट हूँ|

लड़का- ( और ज्यादा विनती करते हुए) मैडम मैं आपके घर की सफाई भी फ्री में कर दिया करूँगा!!

औरत- माफ़ करना मुझे फिर भी जरुरत नहीं हैं धन्यवाद|
लड़के के चेहरे पर एक मुस्कान उभरी और उसने फोन का रिसीवर रख दिया|

दुकान का मालिक जो छोटे लड़के की बात बहुत ध्यान से सुन रहा था वह लड़के के पास आया और बोला- " बेटा मैं तुम्हारी लगन और व्यवहार से बहुत खुश हूँ,

मैं तुम्हे अपने स्टोर में नौकरी दे सकता हूँ"
लड़का- नहीं सर मुझे जॉब की जरुरत नहीं हैं आपका धन्यवाद|

दुकान मालिक- (आश्चर्य से) अरे अभी तो तुम उस लेडी से जॉब के लिए इतनी विनती कर रहे थे !!

लड़का- नहीं सर, मैं अपना काम ठीक से कर रहा हूँ की नहीं बस मैं ये चेक कर रहा था, मैं जिससे बात कर रहा था, उन्ही के यहाँ पर जॉब करता हूँ|

*"This is called Self Appraisal"

"आप अपना बेहतर दीजिये, फिर देखिये
सारी दुनिया आपकी प्रशंसा करेगी..

समझदार बंदर


बहुत पुरानी बात है | किसी जंगल में एक बंदर रहता था | वह बहुत समझदार व् चतुर था | वह एक पेड़ से दुसरे पेड़ पर उछलता – कूदता रहता था | इस खेल में उसे बहुत अच्छा लगता था | एक बार वह जंगल घुमने निकला| घूमते हुए उसे जंगल में एक थेला मिला | थेले में एक कंधा और एक शीशा था | उसने कंधा उठाया और उसे उलट-पलटकर देखने लगा | पर उसे कुछ समझ नहीं आया, इसलिए बेकार समझकर उसने कंधा फ़ेंक दिया |
इसके बाद उसने शीशा उठाया | उसे भी उलट-पलटकर देखने लगा पर तब भी उसे कुछ समझ नहीं आया पर अचानक उसे शीशे में अपना चेहरा देख कर उसे समझ आ गया की जो भी उसके सामने आयगा इसमें दिखाई देगा | फिर उसने सोचा की इसका में क्या करू? कुछ देर सोचने के बाद उसने वह शीशा वापस थेले में डाल दिया और आगे चल पड़ा | पर अब उसी चाल कुछ बदली हुई थी | रास्ते में उसे भालू मिला | वह बोला –"अरे ओ बंदर, इतना अकडकर क्यों चल रहा है ?" भालू की बात सुन बंदर बोला – "में तो ऐसे ही अकडकर चलूगा | तू क्या कर लेगा मेरा? तेरे जैसो को तो में अपने थेले में रखता हु |"
उसी समय जंगल का राजा शेर भी वहा आ गया | शेर ने भालू से पूछा – "तुम दोनों क्यों लड़ रहे हो?" भालू ने शेर के सामने हाथ जोडकर कहा – महाराज ! यह बंदर अकड रहा है | भालू की बात सुनकर शेर ने बंदर अकड़कर पूछा – "अरे ओ बंदर | क्या यह सच है ?" बंदर ने शेर से भी अकड़ते हुए कहा – "क्यों न अकडू | में सबसे ताकतवर हु |"
बंदर की बात सुनते ही शेर को गुस्सा आ गया और दहाड़ते हुए बोला – भाग जा यहाँ से, अगर एक पंजा मर दिया तो यही पर मर जायगा |" बंदर ने शेर से भी व्ही बात कही –" तू मुझे मरेगा? तेरे जैसे को तो में अपने थेले में रखता हु |"
बंदर की निडरता देख शेर थोडा नर्म होकर बोला – "अच्छा में भी तो देखू | निकल मेरे जैसा शेर अपने थेले में से|" फिर क्या, बंदर ने अपना थेला खोला और शीशा निकला और शेर के मुंह के सामने कर दिया | शेर ने उसमे अपना चेहरा देखा पर समझा की इसमें कोई दूसरा शेर है | यह देख कर वह डर गया और उसने सोचा – " यह बंदर तो सचमुच बड़ा ताकतवर है | इससे लड़ना ठीक नहीं |
शेर ने बंदर से हाथ जोड़ते हुए कहा – बंदर जी | आपसे मेरा क्या झगड़ा? आप जो चाहे, करे |" शेर की बात सुन भालू भी बंदर से डर गया | अब तो बंदर और अधिक निडर होकर बड़े मजे से जंगल में रहने लगा |
सीख: समझदारी का फल सदेव अच्छा होता है 

Monday, 9 December 2013

आज ही क्यों नहीं ?

एक बार की बात है कि एक शिष्य अपने गुरु का बहुत आदर-सम्मान किया करता था |गुरु भी अपने इस शिष्य से बहुत स्नेह करते थे लेकिन  वह शिष्य अपने अध्ययन के प्रति आलसी और स्वभाव से दीर्घसूत्री था |सदा स्वाध्याय से दूर भागने की कोशिश  करता तथा आज के काम को कल के लिए छोड़ दिया करता था | अब गुरूजी कुछ चिंतित रहने लगे कि कहीं उनका यह शिष्य जीवन-संग्राम में पराजित न हो जाये|आलस्य में व्यक्ति को अकर्मण्य बनाने की पूरी सामर्थ्य होती है |ऐसा व्यक्ति बिना परिश्रम के ही फलोपभोग की कामना करता है| वह शीघ्र निर्णय नहीं ले सकता और यदि ले भी लेता है,तो उसे कार्यान्वित नहीं कर पाता| यहाँ तक कि  अपने पर्यावरण के प्रति  भी सजग नहीं रहता है और न भाग्य द्वारा प्रदत्त सुअवसरों का लाभ उठाने की कला में ही प्रवीण हो पता है | उन्होंने मन ही मन अपने शिष्य के कल्याण के लिए एक योजना बना ली |एक दिन एक काले पत्थर का एक टुकड़ा उसके हाथ में देते हुए गुरु जी ने कहा –'मैं तुम्हें यह जादुई पत्थर का टुकड़ा, दो दिन के लिए दे कर, कहीं दूसरे गाँव जा रहा हूँ| जिस भी लोहे की वस्तु को तुम इससे स्पर्श करोगे, वह स्वर्ण में परिवर्तित हो जायेगी| पर याद रहे कि दूसरे दिन सूर्यास्त के पश्चात मैं इसे तुमसे वापस ले लूँगा|'
 
 शिष्य इस सुअवसर को पाकर बड़ा प्रसन्न हुआ लेकिन आलसी होने के कारण उसने अपना पहला दिन यह कल्पना करते-करते बिता दिया कि जब उसके पास बहुत सारा स्वर्ण होगा तब वह कितना प्रसन्न, सुखी,समृद्ध और संतुष्ट रहेगा, इतने नौकर-चाकर होंगे कि उसे पानी पीने के लिए भी नहीं उठाना पड़ेगा | फिर दूसरे दिन जब वह  प्रातःकाल जागा,उसे अच्छी तरह से स्मरण था कि आज स्वर्ण पाने का दूसरा और अंतिम दिन है |उसने मन में पक्का विचार किया कि आज वह गुरूजी द्वारा दिए गये काले पत्थर का लाभ ज़रूर उठाएगा | उसने निश्चय किया कि वो बाज़ार से लोहे के बड़े-बड़े सामान खरीद कर लायेगा और उन्हें स्वर्ण में परिवर्तित कर देगा. दिन बीतता गया, पर वह इसी सोच में बैठा रहा की अभी तो बहुत समय है, कभी भी बाज़ार जाकर सामान लेता आएगा. उसने सोचा कि अब तो  दोपहर का भोजन करने के पश्चात ही सामान लेने निकलूंगा.पर भोजन करने के बाद उसे विश्राम करने की आदत थी , और उसने बजाये उठ के मेहनत करने के थोड़ी देर आराम करना उचित समझा. पर आलस्य से परिपूर्ण उसका शरीर नीद की गहराइयों में खो गया, और जब वो उठा तो सूर्यास्त होने को था. अब वह जल्दी-जल्दी बाज़ार की तरफ भागने लगा, पर रास्ते में ही उसे गुरूजी मिल गए उनको देखते ही वह उनके चरणों पर गिरकर, उस जादुई पत्थर को एक दिन और अपने पास रखने के लिए याचना करने लगा लेकिन गुरूजी नहीं माने और उस शिष्य का धनी होने का सपना चूर-चूर हो गया | पर इस घटना की वजह से शिष्य को एक बहुत बड़ी सीख मिल गयी: उसे अपने आलस्य पर पछतावा होने लगा, वह समझ गया कि आलस्य उसके जीवन के लिए एक अभिशाप है और उसने प्रण किया 

बाज की उड़ान

एक बार की बात है कि एक बाज का अंडा मुर्गी के अण्डों के बीच आ गया. कुछ दिनों  बाद उन अण्डों में से चूजे निकले, बाज का बच्चा भी उनमे से एक था.वो उन्ही के बीच बड़ा होने लगा. वो वही करता जो बाकी चूजे करते, मिटटी में इधर-उधर खेलता, दाना चुगता और दिन भर उन्हीकी तरह चूँ-चूँ करता. बाकी चूजों की तरह वो भी बस थोडा सा ही ऊपर उड़ पाता , और पंख फड़-फडाते हुए नीचे आ जाता . फिर एक दिन उसने एक बाज को खुले आकाश में उड़ते हुए देखा, बाज बड़े शान से बेधड़क उड़ रहा था. तब उसने बाकी चूजों से पूछा, कि-
" इतनी उचाई पर उड़ने वाला वो शानदार पक्षी कौन है?"
 
तब चूजों ने कहा-" अरे वो बाज है, पक्षियों का राजा, वो बहुत ही ताकतवर और विशाल है , लेकिन तुम उसकी तरह नहीं उड़ सकते क्योंकि तुम तो एक चूजे हो!"
 
बाज के बच्चे ने इसे सच मान लिया और कभी वैसा बनने की कोशिश नहीं की. वो ज़िन्दगी भर चूजों की तरह रहा, और एक दिन बिना अपनी असली ताकत पहचाने ही मर गया.
 दोस्तों , हममें से बहुत से लोग  उस बाज की तरह ही अपना असली potential जाने बिना एक second-class ज़िन्दगी जीते रहते हैं, हमारे आस-पास की mediocrity हमें भी mediocre बना देती है.हम में ये भूल जाते हैं कि हम आपार संभावनाओं से पूर्ण एक प्राणी हैं. हमारे लिए इस जग में कुछ भी असंभव नहीं है,पर फिर भी बस एक औसत जीवन जी के हम इतने बड़े मौके को गँवा देते हैं.
 
आप चूजों  की तरह मत बनिए , अपने आप पर ,अपनी काबिलियत पर भरोसा कीजिए. आप चाहे जहाँ हों, जिस परिवेश में हों, अपनी क्षमताओं को पहचानिए और आकाश की ऊँचाइयों पर उड़ कर  दिखाइए  क्योंकि यही आपकी वास्तविकता है.